तुम गले मिल कर जो कहते हो कि अब हद से न बढ़
हाथ तो गर्दन में हैं हम पाँव फैलाएँगे क्या
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
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Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
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मैं ही मोमिन मैं ही काफ़िर मैं ही काबा मैं ही दैर
कहते हैं कि रौनक़-ए-जमाली हूँ मैं
साबित है तन में बादशाही दिल की
निकली जो रूह हो गए अजज़ा-ए-तन ख़राब
दूर से यूँ दिया मुझे बोसा
मेरा सलाम इश्क़ अलैहिस-सलाम को
वो बज़्म में हैं रोते हैं उश्शाक़ चौ तरफ़
दुनिया ने मुँह पे डाला है पर्दा सराब का
माना वाइ'ज़ बड़ा ही अल्लामा है
ज़मज़मा नाला-ए-बुलबुल ठहरे
खोल कर ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को पढ़ी उस ने नमाज़
पीरी में शबाब की निशानी न मली