आसमाँ खाए तो ज़मीन देखे
दहन-ए-गोर का निवाला हूँ
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वो रात आए कि सर तेरा ले के बाज़ू पर
वो बुत परी है निकालें न बाल-ओ-पर ता'वीज़
मुझ से बिगड़ गए तो रक़ीबों की बन गई
वा'दा किया है ग़ैर से और वो भी वस्ल का
ग़ैर का हाल तो कहता हूँ नुजूमी बन कर
कुछ लुत्फ़-ए-सुख़न वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं
तुम गले मिल कर जो कहते हो कि अब हद से न बढ़
जा के मैं कू-ए-बुताँ में ये सदा देता हूँ
है अर्श भी यक फ़र्श क़दम का तेरे
मेरा सलाम इश्क़ अलैहिस-सलाम को
ग़फ़लत के तुख़्म बोने वाले उठे
निकली जो रूह हो गए अजज़ा-ए-तन ख़राब