जितने अच्छे हैं मैं हूँ उन में बुरा
हैं बुरे जितने उन में अच्छा हूँ
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नई सदा हो नए होंट हों नया लहजा
आसमाँ खाए तो ज़मीन देखे
गर बस चले तो आप फिरूँ अपने गर्द मैं
मैं ही मोमिन मैं ही काफ़िर मैं ही काबा मैं ही दैर
मैं सर पे गुनाहों का लिए बार आया
बंद-ए-क़बा में बाँध लिया ले के दिल मिरा
क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब
दुनिया ने मुँह पे डाला है पर्दा सराब का
समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट
कुछ न पूछो ज़ाहिदों के बातिन ओ ज़ाहिर का हाल
तुम को मालूम जवानी का मज़ा है कि नहीं
पैदल न मुझे रोज़-ए-शुमार उन से दे