उस वक़्त का हिसाब क्या दूँ
जो तेरे बग़ैर कट गया है
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लरज़ते साए
तुम मिरे इरादों के डोलते सितारों को
साँस लेना भी सज़ा लगता है
इंफ़िसाल
जब भी आँखों में तिरी रुख़्सत का मंज़र आ गया
ये भी क्या चाल है हर गाम पे महशर का गुमाँ
आज पनघट पे ये गाता हुआ कौन आ निकला
मिरे ख़ुदा ने किया था मुझे असीर-ए-बहिश्त
रंग-ए-हर्फ़-ए-सदा की दुनिया में
हर लम्हा अगर गुरेज़-पा है
हम कभी इश्क़ को वहशत नहीं बनने देते
जिसे हर शेर पर देते थे तुम दाद