तुम मिरे इरादों के डोलते सितारों को
यास के ख़लाओं में रास्ता दिखाते हो
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रेस्तोराँ
पा कर भी तो नींद उड़ गई थी
सावन की ये रुत और ये झूलों की क़तारें
तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ
इक सफ़ीना है तिरी याद अगर
उम्र भर उस ने इसी तरह लुभाया है मुझे
कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
वो सब्ज़ खेत के उस पार एक चटान के पास
फिर भयानक तीरगी में आ गए
हमेशा ज़ुल्म के मंज़र हमें दिखाए गए
जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी
दावर-ए-हश्र मुझे तेरी क़सम