यकसाँ हैं फ़िराक़-ए-वस्ल दोनों
ये मरहले एक से कड़े हैं
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Parveen Shakir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
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जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी
जो लोग दुश्मन-ए-जाँ थे वही सहारे थे
फिर भयानक तीरगी में आ गए
फूलों से लहू कैसे टपकता हुआ देखूँ
रेश-ए-गुल को रग-ए-संग बनाने वालो
लड़कियाँ चुनती हैं गेहूँ की सुनहरी बालियाँ
पा कर भी तो नींद उड़ गई थी
कुछ खेल नहीं है इश्क़ करना
इक उम्र के ब'अद मुस्कुरा कर
जब भी आँखों में तिरी रुख़्सत का मंज़र आ गया
यूँ मिरे ज़ेहन में लर्ज़ां है तिरा अक्स-ए-जमील
यूँ बे-कार न बैठो दिन भर यूँ पैहम आँसू न बहाओ