रंग-ए-हर्फ़-ए-सदा की दुनिया में
ज़िंदगी क़त्ल हो गई है कहीं
मर गया लफ़्ज़ उड़ गया मफ़्हूम
और आवाज़ खो गई है कहीं
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
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सूरज को निकलना है सो निकलेगा दोबारा
आज की रात भी तन्हा ही कटी
कुंज-ए-ज़िंदाँ में पड़ा सोचता हूँ
क़ानून-ए-क़ुदरत
मैं हूँ या तू है ख़ुद अपने से गुरेज़ाँ जैसे
यूँ बे-कार न बैठो दिन भर यूँ पैहम आँसू न बहाओ
सारी दुनिया हमें पहचानती है
चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद
उदास चाँद ने बदली की आड़ में हो कर
मैं तेरे कहे से चुप हूँ लेकिन
मर जाता हूँ जब ये सोचता हूँ
लम्हा