दिल के सुनसान जज़ीरों की ख़बर लाएगा
दर्द पहलू से जुदा हो के कहाँ जाएगा
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दिल से दिल नज़रों से नज़रों के उलझने का समाँ
कभी हयात का ग़म है कभी तिरा ग़म है
अब न काबा की तमन्ना न किसी बुत की हवस
तवील रातों की ख़ामुशी में मिरी फ़ुग़ाँ थक के सो गई है
ख़ुश्क ख़ुश्क सी पलकें और सूख जाती हैं
कभी तिरी कभी अपनी हयात का ग़म है
एक उम्र होती है
कब तक बोझल पलकों से अश्कों के सितारे टूटेंगे
ज़िंदगी के वो किसी मोड़ पे गाहे गाहे
जिन्हें रास आ गए हैं ये सहर-नुमा अँधेरे
लम्हा लम्हा शुमार कौन करे
दिल के वीरान रास्ते भी देख