है मेरा चेहरा सैकड़ों चेहरों का आईना
बेज़ार हो गया हूँ तमाशाइयों से मैं
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1105) Peoples Rate This
मुझ को मिरे वजूद से कोई निकाल दे
फ़िक्र के सारे धागे टूटे ज़ेहन भी अब म'अज़ूर हुआ
मिला जो धूप का सहरा बदन शजर न बना
जलती बुझती सी रहगुज़र जैसे
आँधियों की ज़द में है मेरा वजूद
ज़रा सुकून भी सहरा के प्यार ने न दिया
वो ख़्वाब सा पैकर है गुल-ए-तर की तरह है
नगर नगर में नई बस्तियाँ बसाई गईं
प्यार किया था तुम से मैं ने अब एहसान जताना क्या
बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
महसूस कर रहा हूँ तुझे ख़ुशबुओं से मैं