एक दिल है एक हसरत एक हम हैं एक तुम
इतने ग़म कम हैं जो कोई और ग़म पैदा करें
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Wasi Shah
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क्या ज़रूरत बे-ज़रूरत देखना
बाहम जो हुस्न ओ इश्क़ में याराना हो गया
किसी को भेज के ख़त हाए ये कैसा अज़ाब आया
हमारा इंतिख़ाब अच्छा नहीं ऐ दिल तो फिर तू ही
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
चाहिए इश्क़ में इस तरह फ़ना हो जाना
मौत ही आप के बीमार की क़िस्मत में न थी
साक़ी-ओ-वाइ'ज़ में ज़िद है बादा-कश चक्कर में है
जब मुलाक़ात हुई तुम से तो तकरार हुई
शेख़ को जन्नत मुबारक हम को दोज़ख़ है क़ुबूल
ये सदमा जीते जी दिल से हमारे जा नहीं सकता
जब तक अपने दिल में उन का ग़म रहा