हालत दिल-ए-बेताब की देखी नहीं जाती
बेहतर है कि हो जाए ये पैवंद ज़मीं का
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इश्क़ करते हैं तो अहल-ए-इश्क़ यूँ सौदा करें
राह-ए-उल्फ़त का निशाँ ये है कि वो है बे-निशाँ
क्यूँ चुप हैं वो बे-बात समझ में नहीं आता
नज़्ज़ारा जो होता है लब-ए-बाम तुम्हारा
किसी माशूक़ का आशिक़ से ख़फ़ा हो जाना
जब तक अपने दिल में उन का ग़म रहा
कशिश-ए-हुस्न की ये अंजुमन-आराई है
जब मुलाक़ात हुई तुम से तो तकरार हुई
यहाँ बग़ैर-फ़ुग़ाँ शब बसर नहीं होती
तंग आ गया हूँ वुस्अत-ए-मफ़हूम-ए-इश्क़ से
मेरा हाल-ए-ज़ार तो देखा मगर
मौत ही आप के बीमार की क़िस्मत में न थी