रोज़ ओ शब बेच दिए हैं मैं ने
इस बुलंदी से गिराता क्या है
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लुटेरों के लिए सोती हैं आँखें
जहाँ शीशा है पत्थर जागते हैं
शीशे शीशे को पैवस्त-ए-जाँ मत करो
काग़ज़ की नाव हूँ जिसे तिनका डुबो सके
हमारी साँसें मिली हैं गिन के
हाँ नहीं के बीच धुँदलाई सी शाम
बरसात थम चुकी है मगर हर शजर के पास
लहर से लहर का नाता क्या है
नींद को लोग मौत कहते हैं