किस नहज से हम ने इक कहानी कह दी
दो बातों में बात दिल की सारी कह दी
लफ़्ज़ों की किफ़ायत भी हुनर है 'अकबर'
जब कह न सके ग़ज़ल रुबाई कह दी
Wasi Shah
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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रुत बदली तो ज़मीं के चेहरे का ग़ाज़ा भी बदला
मिरी शिकस्त भी थी मेरी ज़ात से मंसूब
दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से
चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही
हाँ यही शहर मिरे ख़्वाबों का गहवारा था
आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है
मुबहम थे सब नुक़ूश नक़ाबों की धुँद में
कब फ़िक्र-ओ-ख़याल का असासा कम है
फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे
दूर तक बस इक धुँदलका गर्द-ए-तन्हाई का था
हर्फ़-ए-यक़ीं