दिल-ओ-निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का
तुम्हारा हो के भी मुमकिन है मैं रहूँ उस का
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एक कहानी
वो हुस्न-ए-सब्ज़ जो उतरा नहीं है डाली पर
तुझे ख़बर नहीं इस बात की अभी शायद
इक आग हमारी मुंतज़िर है
दिल ओ निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का
जिस्मों से निकल रहे हैं साए
ख़बर नहीं थी किसी को कहाँ कहाँ कोई है
यहीं कहीं पे कोई शहर बस रहा था अभी
अंदेशे मुझे निगल रहे हैं
अब ज़मीं भी जगह नहीं देती
हमारे जिस्म अगर रौशनी में ढल जाएँ