तुझे ख़बर नहीं इस बात की अभी शायद
कि तेरा हो तो गया हूँ मगर मैं हूँ उस का
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बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे
हम आए रोज़ नया ख़्वाब देखते हैं मगर
पहले तराशा काँच से उस ने मिरा वजूद
गुज़र रहा हूँ किसी जन्नत-ए-जमाल से मैं
अब ज़मीं भी जगह नहीं देती
दिल ओ निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का
इक आग हमारी मुंतज़िर है
आए अदम से एक झलक देखने तिरी
ख़्वाब गलियों में फिर रहे थे और
एक कहानी
ख़बर नहीं थी किसी को कहाँ कहाँ कोई है
जिस्मों से निकल रहे हैं साए