ख़्वाब गलियों में फिर रहे थे और
लोग अपने घरों में सोए थे
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(707) Peoples Rate This
यहीं कहीं पे कोई शहर बस रहा था अभी
आए अदम से एक झलक देखने तिरी
हम आए रोज़ नया ख़्वाब देखते हैं मगर
अब ज़मीं भी जगह नहीं देती
हमारे जिस्म अगर रौशनी में ढल जाएँ
एक कहानी
सुना गया है यहाँ शहर बस रहा था कोई
तुझे ख़बर नहीं इस बात की अभी शायद
तुम्हारे होने का शायद सुराग़ पाने लगे
दिल-ओ-निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का
दिल ओ निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का