ये मुंसिफ़ान-ए-शहर हैं ये पासबान-ए-शहर
इन को बताओ नाम जो बलवाइयों के हैं
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Rahat Indori
Anwar Masood
Parveen Shakir
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जो क़तरे में समुंदर देखते हैं
जब मुख़ालिफ़ मिरा राज़-दाँ हो गया
जो ज़ेहन-ओ-दिल के ज़हरीले बहुत हैं
क़िस्मत में दर्द है तो दवा ही न लाऊँगा
दिल बहलने के वसीले दे गया वो
यारान-ए-तेज़-गाम से रंजिश कहाँ है अब
लम्हा लम्हा यही सोचूँ यही देखा चाहूँ
कहाँ से लाएँगे आँसू अज़ा-दारी के मौसम में
जो पलकों पर मिरी ठहरा हुआ है
अगर बुलंदी का मेरी वो ए'तिराफ़ करे
राह-ए-वफ़ा में कोई हमें जानता न था