आस डूबी तो दिल हुआ रौशन
बुझ गया दिल तो दिल के दाग़ जले
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इरफ़ान-ओ-आगही के सज़ा-वार हम हुए
आँख दरिया जिगर लहू करना
कोई इलाज-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी बता वाइज़
अहद-ए-वफ़ा का क़र्ज़ अदा कर दिया गया
वो कम-नसीब जो अहद-ए-जफ़ा में रहते हैं
दफ़अतन आँधियों ने रुख़ बदला
दिन ढला शब हुई चराग़ जले
मिला जो कोई यहाँ रम्ज़-आशना न मुझे
फिर वही शब के सराबों का चलन!
भुला चुके हैं ज़मीन ओ ज़माँ के सब क़िस्से
आईना देखता हूँ