मोती समझ के शान-ए-करीमी ने चुन लिए
क़तरे जो थे मिरे अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के
Wasi Shah
Allama Iqbal
Habib Jalib
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(19258) Peoples Rate This
ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक
कभी आवारा ओ बे-ख़ानुमाँ इश्क़
इल्तिजा-ए-मुसाफ़िर
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं
इक दानिश-ए-नूरानी इक दानिश-ए-बुरहानी
ये मेहर है बे-मेहरी-ए-सय्याद का पर्दा
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा