यही ज़माना-ए-हाज़िर की काएनात है क्या
दिमाग़ रौशन ओ दिल तीरा ओ निगह बेबाक
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सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकाँ हूँ
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
तराना-ए-मिल्ली
आज़ादी-ए-अफ़्कार से है उन की तबाही
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र-ओ-नाज़ नहीं
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
हुआ न ज़ोर से उस के कोई गरेबाँ चाक