अब बन के फ़लक-ज़ाद दिखाते हैं हमें आँख
ज़र्रे वही कल जिन को उछाला था हमीं ने
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मोहिब्बान-ए-वतन का नारा
हम ने भी की थीं कोशिशें हम न तुम्हें भुला सके
हद-ए-तकमील को पहुँची तिरी रानाई-ए-हुस्न
सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले
वो दुनिया थी जहाँ तुम रोक लेते थे ज़बाँ मेरी
फ़र्क़ जो कुछ है वो मुतरिब में है और साज़ में है
ये दिल आवेज़ी-ए-हयात न हो
गले लगा के किया नज़्र-ए-शो'ला-ए-आतिश
वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत
ख़ुदा जाने दुआ थी या शिकायत लब पे बिस्मिल के
आईना-ए-रंगीन जिगर कुछ भी नहीं क्या
जान-ए-अफ़्साना यही कुछ भी हो अफ़्साने का नाम