गले लगा के किया नज़्र-ए-शो'ला-ए-आतिश
क़फ़स से छूट के फिर आशियाँ मिले न मिले
Habib Jalib
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
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अब बन के फ़लक-ज़ाद दिखाते हैं हमें आँख
दिल की दिल को ख़बर नहीं मिलती
'मुल्ला' बना दिया है इसे भी महाज़-ए-जंग
गुरु-नानक
मोहब्बत फ़र्क़ खो देती है आ'ला और अदना का
इश्क़ में वो भी एक वक़्त है जब
अश्क-ए-ग़म-ए-उल्फ़त में इक राज़-ए-निहानी है
वो दुनिया थी जहाँ तुम रोक लेते थे ज़बाँ मेरी
रह-रवी है न रहनुमाई है
ज़िंदगी गो कुश्ता-ए-आलाम है
ये दिल आवेज़ी-ए-हयात न हो
शम्अ' इक मोम के पैकर के सिवा कुछ भी न थी