सूरत छुपाइए किसी सूरत-परस्त से
हम दिल में नक़्श आप की तस्वीर कर चुके
Ahmad Faraz
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Gulzar
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अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके
यूसुफ़-ए-हुस्न का हुस्न आप ख़रीदार रहा
आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ
उन से हम लौ लगाए बैठे हैं
कैसी हया कहाँ की वफ़ा पास-ए-ख़ल्क़ क्या
वो जो गर्दन झुकाए बैठे हैं
थक के बैठे हो दर-ए-सौम'अ पर क्या 'अनवर'
अल्लाह-रे फ़र्त-ए-शौक़-ए-असीरी के शौक़ में
हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का
मिट्टी ख़राब है तिरे कूचे में वर्ना हम
फेंकिए क्यूँ मय-ए-नाक़िस साक़ी
मैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ छुट के जाऊँगा कहाँ