फेंकिए क्यूँ मय-ए-नाक़िस साक़ी
शैख़-साहिब की ज़ियाफ़त ही सही
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मिट्टी ख़राब है तिरे कूचे में वर्ना हम
वो जो गर्दन झुकाए बैठे हैं
पी भी जा शैख़ कि साक़ी की इनायत है शराब
नींद का काम गरचे आना है
किस सोच में हैं आइने को आप देख कर
न मैं समझा न आप आए कहीं से
मैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ छुट के जाऊँगा कहाँ
नज़र आए क्या मुझ से फ़ानी की सूरत
मोहब्बत हो तो बर्क़-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो
'अनवर' ने बदले जान के ली जिंस-ए-दर्द-ए-दिल
नाकामी-ए-विसाल का पैग़ाम है मुझे