मिट्टी ख़राब है तिरे कूचे में वर्ना हम
अब तक तो जिस ज़मीं पे रहे आसमाँ रहे
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नींद का काम गरचे आना है
नाकामी-ए-विसाल का पैग़ाम है मुझे
नज़र आए क्या मुझ से फ़ानी की सूरत
हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का
गोया कि सब ग़लत हैं मिरी बद-गुमानियाँ
गरचे क्या कुछ थे मगर आप को कुछ भी न गिना
किस सोच में हैं आइने को आप देख कर
सूरत छुपाइए किसी सूरत-परस्त से
हर शय को इंतिहा है यक़ीं है कि वस्ल हो
फेंकिए क्यूँ मय-ए-नाक़िस साक़ी