गोया कि सब ग़लत हैं मिरी बद-गुमानियाँ
देखे तो कोई शक्ल तुम्हारी हया के साथ
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मिट्टी ख़राब है तिरे कूचे में वर्ना हम
बे-तरह पड़ती है नज़र उन की
शर्म भी इक तरह की चोरी है
गरचे क्या कुछ थे मगर आप को कुछ भी न गिना
उन से हम लौ लगाए बैठे हैं
'अनवर' ने बदले जान के ली जिंस-ए-दर्द-ए-दिल
हश्र को मानता हूँ बे-देखे
पी भी जा शैख़ कि साक़ी की इनायत है शराब
न मैं समझा न आप आए कहीं से
थक के बैठे हो दर-ए-सौम'अ पर क्या 'अनवर'
आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ
अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके