उन से हम लौ लगाए बैठे हैं
आग दिल में दबाए बैठे हैं
Parveen Shakir
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Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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Jaun Eliya
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'अनवर' ने बदले जान के ली जिंस-ए-दर्द-ए-दिल
पी भी जा शैख़ कि साक़ी की इनायत है शराब
नाकामी-ए-विसाल का पैग़ाम है मुझे
कैसी हया कहाँ की वफ़ा पास-ए-ख़ल्क़ क्या
हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का
है भी और फिर नज़र नहीं आती
मैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ छुट के जाऊँगा कहाँ
सूरत छुपाइए किसी सूरत-परस्त से
बे-तरह पड़ती है नज़र उन की
मिट्टी ख़राब है तिरे कूचे में वर्ना हम
हर शय को इंतिहा है यक़ीं है कि वस्ल हो