अल्लाह-रे फ़र्त-ए-शौक़-ए-असीरी की शौक़ में
पहरों उठा उठा के सलासिल को देखना
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(821) Peoples Rate This
उन से हम लौ लगाए बैठे हैं
कुछ ख़बर होती तो मैं अपनी ख़बर क्यूँ रखता
अश्क बेताब व निगह बे-बाक व चश्म-ए-तर ख़राब
मिट्टी ख़राब है तिरे कूचे में वर्ना हम
सूरत छुपाइए किसी सूरत-परस्त से
मिरी नुमूद से पैदा है रंग-ए-नाकामी
अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके
गरचे क्या कुछ थे मगर आप को कुछ भी न गिना
वो जो गर्दन झुकाए बैठे हैं
नाकामी-ए-विसाल का पैग़ाम है मुझे
थक के बैठे हो दर-ए-सौम'अ पर क्या 'अनवर'
'अनवर' ने बदले जान के ली जिंस-ए-दर्द-ए-दिल