ज़माने भर ने कहा 'अर्श' जो, ख़ुशी से सहा
पर एक लफ़्ज़ जो उस ने कहा सहा न गया
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1018) Peoples Rate This
हैराँ हूँ कि ये कौन सा दस्तूर-ए-वफ़ा है
ग़म की गर्मी से दिल पिघलते रहे
क्या साथ तिरा दूँ कि मैं इक मौज-ए-हवा हूँ
हम हद-ए-इंदिमाल से भी गए
बस एक ही कैफ़िय्यत-ए-दिल सुब्ह-ओ-मसा है
रौशनी बन के सितारों में रवाँ रहते हैं
बाज़-गश्त
बंद आँखों से न हुस्न-ए-शब का अंदाज़ा लगा
हम कि मायूस नहीं हैं उन्हें पा ही लेंगे
पत्थर के उस बुत की कहानी
इसे कहना