ये आँसू ढूँडता है तेरा दामन
मुसाफ़िर अपनी मंज़िल जानता है
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हालात ने किसी से जुदा कर दिया मुझे
न आया ग़म भी मोहब्बत में साज़गार मुझे
ग़म-ए-हयात से जब वास्ता पड़ा होगा
ऐ मौज-ए-हवादिस तुझे मालूम नहीं क्या
गिराँ गुज़रने लगा दौर-ए-इंतिज़ार मुझे
ज़िंदगी का हर नफ़स मम्नून है तदबीर का
बार-हा ये भी हुआ अंजुमन-ए-नाज़ से हम
ग़ुंचा ओ गुल माह ओ अंजुम सब के सब बेकार थे
जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई
तुम दूर हो तो प्यार का मौसम न आएगा
दो-जहाँ से मावरा हो जाएगा