बार-हा ये भी हुआ अंजुमन-ए-नाज़ से हम
सूरत-ए-मौज उठे मिस्ल-ए-तलातुम आए
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मैं अब तेरे सिवा किस को पुकारूँ
तुम दूर हो तो प्यार का मौसम न आएगा
गिराँ गुज़रने लगा दौर-ए-इंतिज़ार मुझे
देखिए अहद-ए-वफ़ा अच्छा नहीं
जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए
इतना तो बता जाओ ख़फ़ा होने से पहले
न बज़्म अपनी न अपना साक़ी न शीशा अपना न जाम अपना
फ़र्क़ इतना है कि तू पर्दे में और मैं बे-हिजाब
ये आँसू ढूँडता है तेरा दामन
ऐसे इक़रार में इंकार के सौ पहलू हैं
दो-जहाँ से मावरा हो जाएगा
जब अपने पैरहन से ख़ुशबू तुम्हारी आई