न आया ग़म भी मोहब्बत में साज़गार मुझे
वो ख़ुद तड़प गए देखा जो बे-क़रार मुझे
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गिराँ गुज़रने लगा दौर-ए-इंतिज़ार मुझे
जब अपने पैरहन से ख़ुशबू तुम्हारी आई
हालात ने किसी से जुदा कर दिया मुझे
ये आँसू ढूँडता है तेरा दामन
इश्क़ को जब हुस्न से नज़रें मिलाना आ गया
अजब अंदाज़ के शाम-ओ-सहर हैं
जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए
लब ओ रुख़्सार की क़िस्मत से दूरी
तुम दूर हो तो प्यार का मौसम न आएगा
जब ज़िंदगी सुकून से महरूम हो गई