मेरा वजूद
दीवार-ए-संग-ओ-आहन है
जिसे
रात भर
याजूज और माजूज
अपनी
नोकीली ज़बान से
चाटते रहते हैं
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
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हर सू है तारीकी छाई तुम भी चुप और हम भी चुप
अंजाम
कोई दीवार सलामत है न अब छत मेरी
सज़ा
जगमगाती ख़्वाहिशों का नूर फैला रात भर
कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं
वक़्त का कुछ रुका सा धारा है
आहट
दोस्तों के साथ दिन में बैठ कर हँसता रहा
किश्त-ए-दिल वीराँ सही तुख़्म-ए-हवस बोया नहीं
हमारी याद उन्हें आ गई तो क्या होगा
फेंका था किस ने संग-ए-हवस रात ख़्वाब में