Ghazals of Azad Gulati

Ghazals of Azad Gulati
नामआज़ाद गुलाटी
अंग्रेज़ी नामAzad Gulati
जन्म की तारीख1935

वो रूह के गुम्बद में सदा बन के मिलेगा

वो जो किसी का रूप धार कर आया था

उम्र भर चलते रहे हम वक़्त की तलवार पर

तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है

तेरे क़दमों की आहट को तरसा हूँ

सरहद-ए-जिस्म से बाहर कहीं घर लिक्खा था

सरहद-ए-जिस्म से बाहर कहीं घर लिक्खा था

साहिल पे रुक के सू-ए-समुंदर न देखिए

रौशनी फैली तो सब का रंग काला हो गया

फिर इस के बा'द का कोई न हो गुज़र मुझ में

मेरा तो नाम रेत के सागर पे नक़्श है

मैं बिछड़ कर तुझ से तेरी रूह के पैकर में हूँ

मैं अपने आप से इक खेल करने वाला हूँ

लम्हा लम्हा इक नई सई-ए-बक़ा करती हुई

किस ने सदा दी कौन आया है

ख़ुद हमीं को राहतों के कैफ़ का चसका न था

ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं

कर्ब हरे मौसम का तब तक सहना पड़ता है

कभी मिली जो तिरे दर्द की नवा मुझ को

जो ग़म में जलते रहे उम्र-भर दिया बन कर

हर इक शिकस्त को ऐ काश इस तरह मैं सहूँ

हमारी आँख में ठहरा हुआ समुंदर था

गो मिरा साथ मिरी अपनी नज़र ने न दिया

एक हंगामा बपा है मुझ में

डूब कर ख़ुद में कभी यूँ बे-कराँ हो जाऊँगा

दिन में इस तरह मिरे दिल में समाया सूरज

बहुत लम्बा सफ़र तपती सुलगती ख़्वाहिशों का था

अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया

आने वाले हादसों के ख़ौफ़ से सहमे हुए

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