दिल ख़ाक हुआ प्यार की इस आग में जल कर
और झाँक के उस ने कभी अंदर नहीं देखा
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हमारे चेहरे पे रंज-ओ-मलाल ऐसा था
थी उस की बंद मुट्ठी में चिट्ठी दबी हुई
दरीचे सो गए शब जागती है
हर एक राह में इम्कान-ए-हादिसा है अभी
तुम बहर-ए-मोहब्बत के किनारे पे खड़े थे
जी रहा हूँ मैं उदासी भरी तस्वीर के साथ
मैं महल रेत के सहरा में बनाने बैठा
हरे दरख़्त का शाख़ों से रिश्ता टूट गया
सच बोलना चाहें भी तो बोला नहीं जाता
मिरी दुनिया अकेली हो रही है
इस को कोई ग़म नहीं है जिस का घर पत्थर का है
ब-वक़्त-ए-शाम समुंदर में गिर गया सूरज