हमेशा तिनके ही चुनते गुज़र गई अपनी
मगर चमन में कहीं आशियाँ बना न सके
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चारागर चुप हैं क्यूँ इलाज करें
उदासी अब किसी का रंग जमने ही नहीं देती
क्यूँ न हो शौक़ तिरे दर पे जबीं-साई का
तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं
शम्अ' बुझ कर रह गई परवाना जल कर रह गया
कुछ हिसाब ऐ सितम ईजाद तो कर
ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं
वो निगाहें क्या कहूँ क्यूँ कर रग-ए-जाँ हो गईं
सामने आइना था मस्ती थी
हाए क्या चीज़ थी जवानी भी
मुसीबत थी हमारे ही लिए क्यूँ
दिल आया इस तरह आख़िर फ़रेब-ए-साज़-ओ-सामाँ में