आज की रात दिवाली है दिए रौशन हैं
आज की रात ये लगता है मैं सो सकता हूँ
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शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने
सुकूत उस का है सब्र-ए-जमील की सूरत
अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ
घर में चाँदी के कोई सोने के दर रख जाएगा
दरीदा-पैरहनों में शुमार हम भी हैं
अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते
आँसुओं से लिख रहे हैं बेबसी की दास्ताँ
अपने दुख-दर्द का अफ़्साना बना लाया हूँ
ज़ख़्म जो तुम ने दिया वो इस लिए रक्खा हरा
सारी रात के बिखरे हुए शीराज़े पर रक्खी हैं