अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे
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है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे
मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे
इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है
मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या