तौर मजनूँ की निगाहों के बताते हैं हमें
इसी लैला में है इक दूसरी लैला देखो
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यूँ गुलशन-ए-हस्ती की माली ने बिना डाली
हलाक-ए-तेग़-ए-जफ़ा या शहीद-ए-नाज़ करे
दिल लिया जान ली नहीं जाती
कहाँ ईमान किस का कुफ़्र और दैर-ओ-हरम कैसे
मुझे जल्वों की उस के तमीज़ हो क्या मेरे होश-ओ-हवास बचा ही नहीं
सहारा मौजों का ले ले के बढ़ रहा हूँ मैं
दारू-ए-दर्द-ए-निहाँ राहत-ए-जानी सनमा
सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़
जो सुनता हूँ सुनता हूँ मैं अपनी ख़मोशी से
जुस्तुजू करते ही करते खो गया
वो क़ुलक़ुल-ए-मीना में चर्चे मिरी तौबा के
कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं