जो सुनता हूँ सुनता हूँ मैं अपनी ख़मोशी से
जो कहती है कहती है मुझ से मिरी ख़ामोशी
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काबे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिए
अपनी हस्ती का अगर हुस्न नुमायाँ हो जाए
देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे
मुबारक साक़ी-ए-मस्ताँ मुबारक
हम मय-कदे से मर के भी बाहर न जाएँगे
पास-ए-अदब मुझे उन्हें शर्म-ओ-हया न हो
दिल लिया जान ली नहीं जाती
क्या गिला इस का जो मेरा दिल गया
मुझे जल्वों की उस के तमीज़ हो क्या मेरे होश-ओ-हवास बचा ही नहीं
सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़
मिरे दर्द-ए-निहाँ का हाल मोहताज-ए-बयाँ क्यूँ हो
मैं यार का जल्वा हूँ