जिस की इस आलम-ए-सूरत में है रंग-आमेज़ी
उसी तस्वीर का ख़ाका तो ये इंसान भी है
Habib Jalib
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Parveen Shakir
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Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
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बताए देती है बे-पूछे राज़ सब दिल के
पहले शर्मा के मार डाला
अपना तो ये मज़हब है काबा हो कि बुत-ख़ाना
हलाक-ए-तेग़-ए-जफ़ा या शहीद-ए-नाज़ करे
देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे
जो सुनता हूँ सुनता हूँ मैं अपनी ख़मोशी से
ग़म्ज़ा पैकान हुआ जाता है
बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
न सुनो मेरे नाले हैं दर्द-भरे दार-ओ-असरे आह-ए-सहरे
तुम ख़फ़ा हो तो अच्छा ख़फ़ा हो
में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
तौर मजनूँ की निगाहों के बताते हैं हमें