मेरी तरह टूटे आईने में उस ने भी
टुकड़े टुकड़े अपने आप को पाया होगा
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कितने सादा हैं हम कि बैठे हैं
एक आलम है ये हैरानी का जीना कैसा
बे-तअल्लुक़ सारे रिश्ते कौन किस का आश्ना
कब एक रंग में दुनिया का हाल ठहरा है
बदन पे ज़ख़्म सजाए लहू लबादा किया
देता था जो साया वो शजर काट रहा है
पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे
ख़ुद अपनी फ़िक्र उगाती है वहम के काँटे
दर बदर की ख़ाक थी तक़दीर में
हमारी जागती आँखों में ख़्वाब सा क्या था
अनहोनी कुछ ज़रूर हुई दिल के साथ आज