यारब तू मुझे मेरे गुनाहों की सज़ा दे
या मुझ को गुनाहों के लिए अपनी रज़ा दे
Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
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Rahat Indori
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Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Gulzar
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सुना है ख़ुद को
डाइरी
मैं ने अपना हक़ माँगा था वो नाहक़ ही रूठ गया
सुनहरी मछली
सब कुछ झूट है लेकिन फिर भी बिल्कुल सच्चा लगता है
वो नहीं मेरा मगर उस से मोहब्बत है तो है
अजब कश्मकश है अजब है कशाकश ये क्या बीच में है हमारे तुम्हारे
चाहत
दोनों में कितना फ़र्क़ मगर दोनों का हासिल तन्हाई
प्यास
बे-हद बेचैनी है लेकिन मक़्सद ज़ाहिर कुछ भी नहीं