उस को जाने दे अगर जाता है
ज़हर कम हो तो उतर जाता है
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मैं ग़ार में था और हवा के बग़ैर था
हर शख़्स परेशान है घबराया हुआ है
अदावतों में जो ख़ल्क़-ए-ख़ुदा लगी हुई है
ख़ौफ़ ग़र्क़ाब हो गया 'फ़ैसल'
हिज्र मौजूद है फ़साने में
इन लोगों में रहने से हम बेघर अच्छे थे
गिर जाए जो दीवार तो मातम नहीं करते
शजर से बिछड़ा हुआ बर्ग-ए-ख़ुश्क हूँ 'फ़ैसल'
क्या इल्म कि रोते हों तो मर जाते हों 'फ़ैसल'
हर्फ़ अपने ही मआनी की तरह होता है
शामियानों की वज़ाहत तो नहीं की गई है
दुख नहीं है कि जल रहा हूँ मैं