क्या भूल गए हैं वो मुझे पूछना क़ासिद
नामा कोई मुद्दत से मिरे काम न आया
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कहीं सुकूँ न मिला दिल को बज़्म-ए-यार के बा'द
है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है
मिरे दाग़-ए-दिल वो चराग़ हैं नहीं निस्बतें जिन्हें शाम से
किस तरह छोड़ दूँ ऐ यार मैं चाहत तेरी
निकले वो फूल बन के तिरे गुल्सिताँ से हम
ये तमन्ना है कि इस तरह मुसलमाँ होता
तिरा ग़म रहे सलामत यही मेरी ज़िंदगी है
वो आश्ना-ए-मंज़िल-ए-इरफ़ाँ हुआ नहीं
काफ़िर-ए-इश्क़ को क्या से क्या कर दिया
जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया
उठा पर्दा तो महशर भी उठेगा दीदा-ए-दिल में
ऐ सनम देर न कर अंजुमन-आरा हो जा