आदाब-ए-आशिक़ी से तो हम बे-ख़बर न थे
दीवाने थे ज़रूर मगर इस क़दर न थे
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हसरत-ए-दिल ना-मुकम्मल है किताब-ए-ज़िंदगी
ग़म-ओ-अलम से जो ताबीर की ख़ुशी मैं ने
सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता
क़दम अपने हरीम-ए-नाज़ में इस शौक़ से रखना
हस्ती इक नक़्श-ए-इनइकासी है
फूलों को गुलिस्ताँ में कब रास बहार आई
एक ख़्वाब-ओ-ख़याल है दुनिया
जुरअत-ए-इश्क़ हवस-कार हुई जाती है
हासिल-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नाकाम है
उन पे क़ुर्बान हर ख़ुशी कर दी
अजीब कश्मकश है कैसे हर्फ़-ए-मुद्दआ कहूँ
इक तेरा आसरा है फ़क़त ऐ ख़याल-ए-दोस्त