कुछ तेरा समर न ऐ जवानी पाया
सरमा-ज़दा बाग़-ए-ज़िंदगानी पाया
जी ख़ाक लगे 'शोर' कि इस गुलशन में
जो फूल खिला उसी को फ़ानी पाया
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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नहीं है टूटे की बूटी जहान में पैदा
जहाँ में ज़र का है कारख़ाना न कोई अपना न है यगाना
पीरी में ख़ाक ज़िंदगानी का मज़ा
अदम से हस्ती में जब हम आए न कोई हमदर्द साथ लाए
शौक़ ने की जो रहबरी दिल की
क्या वस्फ़ लिखूँ ज़ुल्फ़-ए-सियह की लट का
इक ख़याल-ओ-ख़्वाब है ए 'शोर' ये बज़्म-ए-जहाँ
देते न दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर
तुम्हारे इश्क़ में क्या क्या न इख़्तियार किया
जान पर अपनी हाए क्यूँ बनती
रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता
ये फ़र्क़ जीते ही जी तक गदा-ओ-शाह में है