नहीं है टूटे की बूटी जहान में पैदा
शिकस्ता जब हुआ तार-ए-नफ़स नहीं चलता
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क्या वस्फ़ लिखूँ ज़ुल्फ़-ए-सियह की लट का
है तलाश-ए-दो-जहाँ लेकिन ख़बर अपनी किसे
जब जवानी गई छुड़ा कर हाथ
जब तक है शबाब-ए-साज़गार-ए-दौलत
दूर हम से हैं वो तो क्या डर है
पीरी में ख़ाक ज़िंदगानी का मज़ा
देते न दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर
दिल में अपने आरज़ू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं
अदम से हस्ती में जब हम आए न कोई हमदर्द साथ लाए
शौक़ ने की जो रहबरी दिल की
रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता
उस माह-रू पे आँख किसी की न पड़ सकी