ये कैफ़ कैफ़-ए-मोहब्बत है कोई क्या जाने
सब्र ऐ दिल कि ये हालत नहीं देखी जाती
पहलू में इक नई सी ख़लिश पा रहा हूँ मैं
तौर बे-तौर हुए जाते हैं
मौज-ए-अन्फ़ास भी इक तेग़-ए-रवाँ हो जैसे
बे-नियाज़ी से मुदारात से डर लगता है
जो मिरे दिल में आह हो के रही