आप ही से न जब रहा मतलब
फिर रक़ीबों से मुझ को क्या मतलब
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(752) Peoples Rate This
शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबस
यूँ उठा दे हमारे जी से ग़रज़
तमसील ओ इस्तिआरा ओ तश्बीह सब दुरुस्त
गया जो हाथ से वो वक़्त फिर नहीं आता
आशिक़ की बे-कसी का तो आलम न पूछिए
इस को समझो न ख़त्त-ए-नफ़्स 'हफ़ीज़'
बुत-कदा नज़दीक काबा दूर था
गो ये रखती नहीं इंसान की हालत अच्छी
जुनूँ के जोश में फिरते हैं मारे मारे अब
काबा के ढाने वाले वो और लोग होंगे
कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़
परी थी कोई छलावा थी या जवानी थी